Tribute to our ancestors for a history worth cherishing
& sincere gratitude to our family members for their contribution

Saligram Ji Shroff
1785 - 1837
Family History
शूरवीरों की धरती राजस्थान अदम्य साहस, असाधारण पराक्रम एवं अतुलनीय बलिदान की गाथा बयां करती है। इस राज्य का कोना-कोना किसी न किसी विशेषता से भरा हुआ है। चाहे कला-संस्कृति की बात हो या उद्योग-व्यापार की इस राज्य की कोई सानी नहीं है। यहां के हर जिले जहां अपनी अलग पहचान रखते हैं, वहीं झुंझुनू का कोई जोड़ नहीं है। ‘धरती धोरा रीं’ के मुकुट मणि के रूप में सुशोभित झुंझुनू की शान में मंडावा कस्बा चार चांद लगाता है। रजवाड़ों की इस धरती पर शान से खड़ी हवेलियाँ एवं उन पर उकेरे गए नयनाभिराम भित्ति चित्र मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यहां दिल के झरोखे वाली हवेलियां, मनभावन भित्ती चित्र, विश्व प्रसिद्ध फ्रेस्को पेंटिंग और सुकून भरे वातावरण यहां के सराफों का गुणगान करते हैं। यहां के प्रतिष्ठित सराफ (श्रॉफ) परिवारों ने न सिर्फ इस मरूस्थल को सींचा-संवारा है, बल्कि पूरी देश और दुनिया में सुनाम किया है। आम तौर पर श्रॉफ लोग सोने-चांदी के व्यापारी या रुपए पैसे या चाँदी सोने का लेन देन करनेवाला महाजन के रूप में जाने जाते हैं।
मंडावा में बसे सराफ परिवार की कड़ियां फतेहपुर से जुड़ीं हैं। सन् 1705-10 के आस-पास वहां जन्में परम पूज्यनीय थानमल जी सराफ के परिवार का विशेष स्थान रहा है। ये सन् 1765 में मंडावा के कचियागढ़ में अपनी हवेली बनाकर रहने लगे। यहीं से इस परिवार की गाथा शुरू होती है। इनके परिवार ने अपनी प्रतिभा, अपने परिश्रम एवं उद्यमशीलता के बल पर एक से बढ़कर एक कीर्तिमान हासिल किए हैं। खासकर उद्योग एवं व्यवसाय के जगत में इस परिवार ने अपना परचम लहराया और ख्याति हासिल की। इनके सुपुत्र आदरणीय पोखरमल जी, जिनका जन्म अनुमानत: सन् 1730 में हुआ था | पोखरमल जी के दो पुत्र हुए राधाकिशन जी एवं रामजीदास जी | सन् 1762 में जन्में आदरणीय रामदासजी के के दो विवाह हुए थे। उनकी पहली पत्नी से चार पुत्र हुए, जिनके नाम दानतराम जी, शालीग्राम जी, फतेहचंद जी एवं गुमनामीराम जी थे। इसमें श्रद्धेय शालीग्राम जी सराफ के परिवार का विशेष स्थान रहा है। इनका परिवार निरंतर प्रगतिपथ पर अग्रसर रहा है।





Shri Parmeshwari Devi Pitrani Dadiji Trust
Shri Parmeshwari Devi
Pitrani Dadiji Trust
Around 60 years ago from today in the year 1960, the monumental efforts of Shri Bajrang Lal Shroff were instrumental in restoring the buried Temple and the idol of our beloved Dadiji.
Our Dharamshalas at Mandawa and Srinagar – Garhwal are open for stay.
Archives & Contributions...
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Late Rajan Ji
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Support & Efforts...
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– S/o Late Madanlal Ji
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– S/o Sri Rohit Shroff
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