मंडावा का अदम्य-अतुल्य

शूरवीरों की धरती राजस्थान अदम्य साहस, असाधारण पराक्रम एवं अतुलनीय बलिदान की गाथा बयां करती है। इस राज्य का कोना-कोना किसी न किसी विशेषता से भरा हुआ है। चाहे कला-संस्कृति की बात हो या उद्योग-व्यापार की इस राज्य की कोई सानी नहीं है। यहां के हर जिले जहां अपनी अलग पहचान रखते हैं, वहीं झुंझुनू का कोई जोड़ नहीं है। ‘धरती धोरा रीं’ के मुकुट मणि के रूप में सुशोभित झुंझुनू की शान में मंडावा कस्बा चार चांद लगाता है। रजवाड़ों की इस धरती पर शान से खड़ी हवेलियाँ एवं उन पर उकेरे गए नयनाभिराम भित्ति चित्र मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यहां दिल के झरोखे वाली हवेलियां, मनभावन भित्ती चित्र, विश्व प्रसिद्ध फ्रेस्को पेंटिंग और सुकून भरे वातावरण यहां के सराफों का गुणगान करते हैं। यहां के प्रतिष्ठित सराफ (श्रॉफ) परिवारों ने न सिर्फ इस मरूस्थल को सींचा-संवारा है, बल्कि पूरी देश और दुनिया में सुनाम किया है। आम तौर पर श्रॉफ लोग सोने-चांदी के व्यापारी या रुपए पैसे या चाँदी सोने का लेन देन करनेवाला महाजन के रूप में जाने जाते हैं।
मंडावा में बसे सराफ परिवार की कड़ियां फतेहपुर से जुड़ीं हैं। सन् 1705-10 के आस-पास वहां जन्में परम पूज्यनीय थानमल जी सराफ के परिवार का विशेष स्थान रहा है। ये सन् 1765 में मंडावा के कचियागढ़ में अपनी हवेली बनाकर रहने लगे। यहीं से इस परिवार की गाथा शुरू होती है। इनके परिवार ने अपनी प्रतिभा, अपने परिश्रम एवं उद्यमशीलता के बल पर एक से बढ़कर एक कीर्तिमान हासिल किए हैं। खासकर उद्योग एवं व्यवसाय के जगत में इस परिवार ने अपना परचम लहराया और ख्याति हासिल की। इनके सुपुत्र आदरणीय पोखरमल जी, जिनका जन्म अनुमानत: सन् 1730 में हुआ था | पोखरमल जी के दो पुत्र हुए राधाकिशन जी एवं रामजीदास जी | सन् 1762 में जन्में आदरणीय रामदासजी के के दो विवाह हुए थे। उनकी पहली पत्नी से चार पुत्र हुए, जिनके नाम दानतराम जी, शालीग्राम जी, फतेहचंद जी एवं गुमनामीराम जी थे। इसमें श्रद्धेय शालीग्राम जी सराफ के परिवार का विशेष स्थान रहा है। इनका परिवार निरंतर प्रगतिपथ पर अग्रसर रहा है।
शालीग्राम जी के दो सुपुत्रों आदरणीय जयकिशन जी दास एवं जीवनराम जी की पीढ़ियों ने मंडावा को एक नई ख्याति दी। जयकिशन दास जी के पांच पुत्र चतुर्भुज जी, हूनतराय जी, मोहनलाल जी, हीरानंद जी एवं गुलाबराय जी ने अपनी योग्यता के बल पर अपना सुनाम किया। इनमें आदरणीय चतुर्भुज के सुपुत्र हरिबक्श जी हुए, जिनके तीन सुपुत्रों दुर्गा प्रसाद जी, गोवर्द्धनदास जी एवं रामनिवास के परिवार ने व्यवासय जगत में एक अलग मुकाम हासिल किया है। वहीं, सेठ मोहनलालजी कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) आए और यहां कपड़े का व्यापार शुरू किया। भाई हीरानंद जी के साथ उनके व्यवसाय ‘मोहनलाल हीरानंद फर्म’ ने काफी उन्नति की। मोहनलाल जी के दो सुपुत्रों लक्ष्मी नारायण जी एवं ओंकारमल जी तथा हीरानंद जी के दो सुपुत्रों आनंदराम जी तथा सेवाराम जी ने विविध व्यवसायों के माध्यम से अपने परिवार का विशेष रूप से नाम रोशन किया। सेठ आनंदराम जी का जन्म 1865 में हुआ था। वे अत्यंत योग्य एवं व्यवसाय कुशल रहे। इनके छह पुत्रों महादेव लालजी, मुरलीधर जी, हनुमान प्रसाद जी, राम गोपाल जी, बाबूलाल जी, किशोरी लाल जी के भरे पूरे परिवार विभिन्न व्यवसायो में अग्रसर होने के साथ ही सेवा के विविध कार्य भी रहे हैं।
उधर, सेठ आनंदराम के साथ ही छोटे भाई सेठ सेवाराम जी भी व्यवसाय कुशलता में अग्रणी रहे। सेवा राम जी के परिवार सात पुत्र ज्वाला प्रसाद जी, राधा कृष्ण जी, गोपी राम जी, भजन लाल जी, गजानंद जी, लोकनाथ जी और वेणी प्रसाद जी हुए। यह परिवार हीरानंद सेवाराम नाम से कपड़े का व्यवसाय करने लगा। इस परिवार ने भी अपनी व्यवसाय कुशलता के साथ अपनी अलग साख बनाई है। इन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में विशिष्ट प्रतिष्ठा भी हासिल की है।
मंडावा के सराफ (श्रॉफ) परिवारों की एक से बढ़कर एक उपलब्धियां हैं, जो न सिर्फ अपने मंडावा का नाम रोशन करती हैं, बल्कि अपने व्यवसाय एवं कारोबार के क्षेत्र को एक नई ऊंचाई दी है। सराफ वंश का इतिहास निश्चित रूप से स्वर्णिम है, जिन्होंने ढेरों सेवा कार्यों के साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी नई ऊंचाई प्रदान की है।
ऐसे में, जल्द ही उपलब्ध होगा मंडावा के सराफ परिवारों का विस्तृत परिचय, जिसमें होंगी उपलब्धियों की कई असाधारण कहानियां और वर्तमान पीढ़ी की उपलब्धियों की ढेरों गाथाएं। यह प्रेरक होने के साथ ही अनुकरणीय भी होगी।